कितना अच्छा हैं ये सब फिर भी

 कितना अच्छा है ,ये सब फिर भी...


ओढ़कर चुनरी सिर पे ,तुम बहुत सबल नजर आती हो 

पर पता नही क्यों ,ये सब करना एक रूढ़ी  सा समझाती हो 


आंचल को सहेजकर ,बिंदी का श्रृंगार कर प्रकृति सी बन जाती हो 

कितना अच्छा है ये सब, फिर भी ये सब करना मजबूरी समझाती हो 


आंखो में सम्मान लिए , पेरो की पायल से जो ध्वनि बिखेर जाती हो 

मानो जैसे तोड़कर सारी तंद्रा को ,नया दृश्य ,रंग, चित्र प्रभा का उकेर जाती हो 


कितना अच्छा है ये सब ,फिर भी इन सबको तुम बेकारा कह जाती हो  

तुमसे है पहचान सभी भी ,तुम देवी समझी जाती हो 

कितना अच्छा हैं तुम्हारा देवी बनना , फिर भी तुम इन सब को ठुकराती हो 


 कितने अभिनय है तुम्हारे , सबमें प्रवीण सी ढल जाती हो 

कितना अच्छा है ये सब ,फिर भी हर अभिनय में शर्म से भर जाती हो 

निकलती हो एक सिमटे घेरे से ,मिलकर जैसे दोआब सा बन जाती हो 

जाकर के उस आंगन को तुम ,सपने सारे ख्वाब सा कर जाती हो 


कितने अच्छे है वो सपने तुम्हारे ,फिर भी गलियारे में उनको अपने पीछे छोड़ आगे तुम बढ़ जाती हो 


Comments

  1. कई लोगों का है कहना
    हमें ना रोको ना
    हम कभी ना रुक पाएंगे
    हम कभी ना थक पाएंगे
    लाख कोशिश कर लो गिराने की
    हम गिर ना पाएंगे
    हम संभल ही जाएंगे
    जय हिंद जय भारत

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