टूटने को है बल मानुष का !

मल्लाह ऊंची दीवार पर चढ़कर पैगाम दे रहा है  

डूबने  को है अब कस्ती मेरी ,ऐलान कर रहा है !खेला है जो तीक्ष्ण दाव प्रकृति का ..

डूबने को है सूरज प्रभा का ऐसा बयान कर रहा है !!

पत्ते पेड़ो के झड़ रहे है बसंत में ,

कैसा तूफान उमड़ रहा है???  

टूटने को बल मानुष का ,ऐसा प्रमाण दे रहा है !!

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