बीत गया एक और साल

 बीत गया फिर एक साल 


जीवन है जो अधला सा मेरा 

कण–कण समेटकर जोड़ा था

लोहे की समशीर थी जिसको 

तपाकर रक्त सा , उस आग में 

पहिया जीवन का मोड़ा था 


बीत गया फिर एक साल 

राह ताके खड़े रहे हम 

जिद्दी थे तो अड़े रहे हम 

सोचा था तुम लोटोगे फिर से 

बीत गई न जाने कितनी घड़ियां

पल–पल की देरी करते 

लेकिन ....

बीत गया फिर एक साल 


पढ़ा मेने भी हर किस्सा तेरा 

की जब तूने राग अलापे थे 

मोहित तो मन मेरा भी था 

सुर मेरे भी कंठ के कांपे थे 


मेरी हर राग सुनाती 

क्रंदन करता ,हृदय हाल 

लो फिर बीत गया एक साल ।



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