एक बात हिंदी की


एक बात हिंदी की जो बस छु गयी !


वक्त बदलता है लोग बदलते है 

ये अक्सर सुना था पर इतना जल्दी ,बेतरतीब लोग बदल जाए ..ये शायद पहली बार है ।

पर बेशक किसी ने खूब लिखा है ये 

दाग दाग उजाला ,ये सबगजीदा सहर 

वो इंतजार था जिसका, ये वो सहर तो नही 

ये वो सहर तो नही जिसकी आरजू लेकर निकले थे 

की मिल जायेगी मंजिल यूंही  कही न कही 

बात सीधी और साफ सी इस तरह नजर आती है की आपके साथ बदलाव निरंतर ही बने रहेंगे कुछ अच्छे और आपके अनुकूल तो कुछ बिलकुल आपके विपरीत ,इन सब में महत्व ये रखता है कि आप किस तरह उस बदलाव के बिंब की परछाई से आगे निकल पाते है ।

आपका मनोबल सदैव इतना ऊंचा होना चाइए कि यदि आप किसी पड़ाव पर कोई अतिश्योक्ति कर बैठे तो आप उससे उबरकर खुद को एक नई दिशा दे पाए ।

अपने जीवन को सहज बनाए इसे पेचीदा न होने दे क्योंकि मशीनी युग में बहुत सी नई–नई तकनीक वाली हर रोज एक नई रचना सामने आती है तो एक मानव बनकर अपने जीवन को प्राण प्रदान करे ।

वस्तुत: आप जानते है कि बेसब्र व्यक्ति अपनी अभिलाषाओं की प्राप्ति में कुछ जल्दबाजी करता है ,ये एक मनुष्य के लिए स्वाभाविक सी घटना है पर कुछ लोग इसे हास्य का विषय रूप देते है ।

निष्कर्ष रूप में जीवन सहजता से बदलाव को स्वीकार कर उससे तालमेल बिठाने से संबद्ध है ।हमेशा आगे बढ़ते वक्त पीछे की परछाई की वो रागिनी याद रखे जो आपको सफल होने में बाधक बनी और जिनको आप काबू कर पाए। अपनी सफलता की हर बात को शब्दो मे पिरोए ताकि वो आपसे सदैव जुड़ी रहे ।


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