हर बार आगे बढ़ते –बढ़ते 😊

 हर बार आगे बढ़ते–बढ़ते ..

पीछे झांक ले जरा !

कदम तेरे पड़े है कहां ?

क्या निशान बने है जमीं पर ??

पहचान ले ज़रा !

उम्दा रहा है तू हर वक्त,

 ये कहां मुनासिब है ??

एक बार जरा तू अपने , 

अनुबंधो को तराश ले जरा !

और तराशने को ,

वक्त की आफजाही समझता है तू ..

एक बार दुरुस्त हो जाए, तेरे पिछले सारे क़दम !

एक बार उनको अनुभवों की तरह ,उतार ले जरा !


और तू हारा है ,तू जीता है !

ये सब अफवाह फैलाई किसने ??

तूने फैलाव किया है क्षमता का अपनी 

पाकर अग्नि सा साहस ,

दावानल सुलगाई है जिसने !


तू अपने प्रयत्नों से सब पा लेता है 

हर पर्वत के शीश को झुका देता है 

तू एक बार उन्ही कदमों को,

 मलहम लगा अपने अनुभवों का 

फिर उसी पर्वत को पुनः लांघ दे जरा ! 


तू कुछ हारा है..

 तू कुछ जीता है !

ये किसने कहा ??

बस एक बार खुद में झांक ले ज़रा!

भला ये आधारहीन निराशा क्यों है ??

ये सब अफवाह फैलाई है किसने ??

तू बस उत्कर्ष की तलाश में चल ..

बस यूं ही फिर चाहे आसमान को पछाड़ दे भला !



इंसान को अपने जीवन में निरंतर आगे बढ़ते रहने के साथ–साथ अपने पिछले बिताए हुए दिनों को यूं ही नही नकार देना चाहिए,

बल्कि उन दिनों को सहेजकर हम आने वाले किसी प्रयत्न के लिए दृढ़ बन सकते है !ये सभी पिछले अनुभव हमारे आत्मविश्वास को बाल देते है , नीरस मन में उद्गार लाते है !

ऐसे में उन अनुबंधों को सहेजना बहुत लाभान्वित करता है !

कभी कभी मन में खयाल भी आता है की हम कुछ हार चुके है ,या कुछ जीत चुके है  ! ये सिर्फ एक हल्का भ्रम है जो किसी बच्चे को किसी उपहार के लालच स्वरूप दिया गया है ! इन परिस्थितियों में बहुत सहज होना ठीक है ! हमेशा अपने को जानने का प्रयास करे स्वयं की क्षमताओं को जाने ,तब आप पाएंगे कि आप कुछ जीत नहीं रहे है कुछ पा नही रहे है बल्कि अपने उत्कर्ष की ओर आगे बढ़ रहे है !

किसी भी बात का विरोध करने से बचे उससे अच्छा है केसे उससे निपटा जाए उस ओर ध्यान लगाया जाए ! विशेष रूप से ध्यान रहे कभी अपनी इच्छाओं का दमन न करे ,मन को अपनी बाहें फैलाने दे ! उसे अनुमति दे उसकी चर्म सीमा तक चंचलता प्रदर्शित करने की !

इन्ही आशाओं के साथ कुछ पंक्तियां जो अपने भावों को पिरो कर एक सूक्ष्म लेख बनी है !





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