क्या खूब लड़े रण में सैनानी

 क्या खूब लड़े रण में सैनानी 

 मैं भी लहराऊं सब और तिरंगा
मन–मंथन करता दोहराता है !
स्वर्णिम–सा हो ये “अमृत महोत्सव”
मन मेरा बस गीत “शहादत” गाता है 

उस दिन की तो धूप भी पावन 
माटी भी भाग्यशाली थी !
खूब लड़े मर्दानी रण में ,
सनी लहू से चुनर धानी थी !
ऐसा गजब का तांडव दिखलाया
जैसे कोई महाभारत का पांडव गरजाया 
एक एक दुश्मन को धूल चटा डाली... 
क्या खूब लड़े रण में सैनानी !!

क्या खूब लड़े रण में सैनानी ...

एक एक सौ सौ पर भारी
क्या खूब अलख कल्पांत हुआ !
धूल चाटते भागे ब्रितानी,
मानो उस शौर्य के आगे स्वयं सूर्य दीक्षांत हुआ !!
रोज उन्ही के गौरव से , 
महक उठती है ये चुनर धानी ..
क्या खूब लड़े रण में सैनानी..!!

हर दम चढ़ते पर्वत से धोरों पर..
कभी बर्फीले आलम में खुद को मजबूती से संभाले रखते है ।
लहू बहाकर अपना , प्यास इस मिट्टी की पूरी करते है ।।
मुश्किल में भी प्रदर्श दिखाते पौरुष का,
 रण में कभी नहीं डरते है...
रणभूमि की प्यास मिटाते ,
अपने रक्त से अभिमानी ...
क्या खूब लड़े रण में सैनानी ...!!


विश्व विजेता भारत भूमि पर ,
अनगिनत वीर जवान हुए ।
तपाकर देह को कुटिल अग्नि में ,
स्वयं भी धरा पर  कुर्बान हुए।। 
तन– मन यौवन–जीवन सब त्याग दिए पल भर में... 
चलता गया वो धरा को मुकुट पहनाने ,अपने रजरक्त रुधिर से ..
ऐसी तेज तपस्या देख हृदय, अंतर्मन घबराता है ।
उनके बलिदानों के खातिर ही, ये राष्ट्रध्वज लहराता है ।।

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