कुछ भी नहीं अब कहने को !!


कुछ भी नही अब कहने को 

ज़िंदा अरमानों को रहने दो 

क्यूं रोक रही है कश्ती किनारे ...

लहरों संग बातें करने दो 

खाकर थपेड़े थम जाएगी 

जब खुद लहरों से भिड़ जायेगी 

अब जख्म हरे है भरने दो 

मुझे अपने मन का करने दो 


मेरे बिखरे ख्वाबों को रहने दो 

खुद दर्द पुराना सहने दो 

तुम तो लौट न पाओ “संगम” मेरे 

अपनी कश्ती किनारे रहने दो 


जो बरसों से जंगल सूना था 

अब एक अलग चिनगारी है 

बिखरे ख्वाबों को दाह करूंगा 

ये प्रखर भीष्म तैयारी है 


मैं विक्षिप्त,उन्मत,मतवाला हूं

मुझे अपने हाल पे रहने दो 

क्यूं की ,तुम लौट न पाओ “संगम” मेरे 

तो बिखरे ख्वाबों को जलने दो 


रक्त बचा है, अब जीने भर का 

उसे आज़ाद,अकेला बहने दो 

मेरे अधरों पे मौन पड़ा है 

तू ना जाने, ये कौन खड़ा है ??

बिन पहचान इरादों को 

अपने किरदार में रहने दो 

चुप्पी साध रखी अगर अधरो पर 

इस तबियत को खुश रहने दो 

भूल गए सब चढ़ता सूरज 

अब चांद की ठंडक रहने दो 

डूब रही अब गर्त में कश्ती

तो शांत अकेले मरने दो 

डूब गया सब तेरा मेरा 

कुछ नही है अब कहने को 











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